एक प्रेमी के अनदेखे पक्ष को प्रभावशाली ढंग से पेश करता है कुनाल हृदय का नाटक ‘इमरोज़’

पिछले दिनों 22 दिसम्बर, शुक्रवार को मशहूर चित्रकार और कवि इमरोज का निधन हो गया था. वे 97 वर्ष के थे. इमरोज अमृता प्रीतम के अनूठे प्रेमी थे. बिना किसी रिश्ते के वे अमृता के साथ 40 साल तक रहे और अमृता की मृत्यु के बाद भी इमरोज ने कभी उन्हें मृतक नहीं माना. इमरोज को अधिकांश लोग अमृता प्रीतम के साथ जोड़कर देखते हैं. वे एक शानदार चित्रकार, कवि और अद्भुत प्रेमी थे. इमरोज पर युवा लेखक कुनाल हृदय का एक नाटक ‘इमरोज’ नाम से ही राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है. इस नाटक में कुनाल ने इमरोज के उन पक्षों को सामने लाने का सफल प्रयास किया है, जो अभीतक अनदेखे रहे हैं.

इमरोज़ साहित्यिक जगत में एक अत्यन्त चर्चित और लगभग मिथकीय गरिमा हासिल कर चुके प्रेम संबंध को नए और प्रासंगिक ढंग से प्रस्तुत करता नाटक है. अमृता प्रीतम और इमरोज़ के संबंधों की कहानी न तो अनजानी है, न ही अस्पष्ट. इस कहानी के सिरे साहिर लुधियानवी और प्रीतम सिंह से भी जुड़ते हैं. लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि इस कहानी के नायक इमरोज हैं और नायिका अमृता.

मुश्किल यह है कि साहित्य जगत में अमृता प्रीतम का मुकाम इतना ऊंचा और उनका असर इतना व्यापक है कि उसकी विशाल छाया में समर्पित हृदय इमरोज का व्यक्तित्व प्रायः अझोल-अदेखा रह गया है. युवा नाटककार कुनाल हृदय ने इसी अदेखे पक्ष को अपने नाटक में अत्यन्त प्रभावी ढंग से पेश किया है जिससे इमरोज एक उदात्त प्रेमी के रूप में सामने आता है. प्रस्तुत है इस नाटक का एक अंश-

दृश्य-8
चौथा रंग अकीदत का—ग्रीन
(इमरोज़ किताब की शेल्फ से साहिर की एक किताब निकालकर लाता है.)

इमरोज़ : ये देखो, जब ये किताब महज एक डायरी के पन्ने थे, याद है वो दिन जब तुम और साहिर उसके घर पर बिलकुल अकेले थे?

(पृष्ठभूमि में मध्यम वादी आधार का एक गाना बजता है, इमरोज़ पीछे फूंक मारता है, मंच पर हरा धुआं उठता है, अमृता सोफे पर बैठकर मेज पर रखी साहिर की डायरी उठाकर पढ़ने लगती है, पीछे धुएं में से साहिर निकलकर आता है.)

अमृता प्रीतम : माफ कीजिएगा. आपकी इजाजत के बगैर आपकी नज़्में पढ़ रही थी.
साहिर लुधियानवी : इसके लिए माफी कैसी? अपनी तस्वीर देखना कोई गुनाह थोड़ी है.

(अमृता चुप रहती है, साहिर आकर बगल में बैठ जाता है पीठ में दर्द का अभिनय करता है.)

अमृता प्रीतम : आपकी तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही। मेरे ख़याल से मैं फिर कभी आती हूँ।
साहिर लुधियानवी : नहीं, बस पांच मिनट दो. मैंने बाम खरीद लिया है, मैं ये लगा लेता हूं. फिर आराम हो जाएगा. (उठकर जाने लगता है.)

अमृता : सुनिए. लाइए, मैं लगा देती हूं. अपनी पीठ पर खुद बाम कैसे लगाएंगे.

(साहिर बुद्धू की तरह बाम लगाने की कोशिश करके दिखाता है, फिर हार मान लेता है, झिझकता हुआ आता है.)

अमृता प्रीतम : लाइए, मैं लगा देती हूं.
साहिर लुधियानवी : ठीक है.
अमृता प्रीतम : शर्ट उतारिए. नीचे लेट जाइए.
साहिर लुधियानवी : जी!

(साहिर शरमाता-शरमाता शर्ट उतारता है, अमृता की हँसी छूट रही है उसके चेहरे की लाली देखकर.)

अमृता प्रीतम : औंधे होकर चटाई पर लेट जाइए.

(साहिर लेट जाता है, अमृता, साहिर की पीठ पर बाम लगाने लगती है, पीछे गाना और तेज हो जाता है. अमृता की आँखें बन्द हो जाती हैं, इमरोज़ पीछे से आकर चुपके से अमृता के पास बैठता है और उसके कान के पास आकर बोलता है.)

इमरोज़ : बरकते.
अमृता प्रीतम : हम्म!
इमरोज़ : कहां गुम हो?
अमृता प्रीतम : साहिर की पीठ पर अपनी उँगलियों से कुछ लिख रही हूं.

(साहिर की पीठ पर अमृता ने टेक लगाया है, अमृता की पीठ पर इमरोज़ ने टेक लगाया है, तीनों की आँखें बंद हैं.)

इमरोज़ : मैं जानता हूं वो क्या है?
अमृता : क्या?
इमरोज़ : उसका नाम…साहिर
अमृता : तुम्हें कैसे पता?
इमरोज़ : क्योंकि तुम लिखती उसकी पीठ पर हो, लेकिन महसूस मैं अपनी पीठ पर करता हूं.
अमृता : ये कैसी मोहब्बत है जीती?
इमरोज़ : मोहब्बत जो शब्द और परिभाषा की दुनिया से बहुत दूर है, बोला था न मेरी आँखें वो रंग भी पहचानती हैं जिनका कोई नाम नहीं.

(अमृता किसी सोच में पड़ जाती है.)
मत सोचो ज़्यादा. सफर में आगे बढ़ना होगा, इश्क के अगले पड़ाव पर.

अमृता : मुझे डर लगता जीती.
इमरोज़ : चल इश्क़ के पांचवें आसमान पर. इबादत पर. जब महबूब खुद ख़ुदा हो जाता है.

Tags: Books, Hindi Literature, Hindi Writer, Literature

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Garhwa Dayri
Author: Garhwa Dayri

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