मुस्लिम संस्कृति में अलग-अलग तरह के विवाहों को सामाजिक जरूरत माना जाता है. इस्लामी कानून के तहत विवाह कई तरह के होते हैं. इस्लाम में विवाह को सामाजिक अनुबंध माना जाता है. पति-पत्नी और उनके परिवार एक समझौता करते हैं, जिसके तहत पति का परिवार लड़की और उसके परिवार को मेहर के तौर पर तय राशि का भुगतान करता है. इसके बदले लड़की लड़के से शादी करने के लिए सहमति जताती है. साफ है कि इस्लाम में निकाह को सामाजिक व्यवस्था के तौर पर लिया जाता है.
दुनियाभर में मुसलमानों के दो मुख्य संप्रदाय सुन्नी और शिया हैं, जो अपनी मान्यताओं और परंपराओं के आधार पर बंटे हुए हैं. दोनों संप्रदायों में शादियां भी अलग-अलग परंपराओं और रीति-रिवाजों के साथ होती हैं. इसी वजह से इस्लामी कानून के तहत निकाह भी कई तरह से होते हैं. इसके अलावा, इस्लामी विवाह सामाजिक अनुबंध है और दोनों पक्षों पर कानूनी तौर पर बाध्यकारी है. सामाजिक अनुबंध या करार होने के कारण मुस्लिमों में निकाह को इस्लामी कानूनों के तहत वर्गीकृत किया गया है. इसके मुताबिक, मुस्लिमों में सहीह, बातिल, फासिद और मुताह निकाह होते हैं. सभी तरह के निकाह की अपनी शर्तें हैं.
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सहिह निकाह में मिलता है उत्तराधिकार
सहिह निकाह में सहिह शब्द ‘सही’ या ‘वैध’ के लिए उर्दू शब्द है. जब मुस्लिम विवाह की सभी जरूरी शर्तें पूरी हो जाती हैं, तो इसे सहिह निकाह या वैध विवाह कहा जाता है. इसका मतलब है कि जब एक मुस्लिम पुरुष और एक मुस्लिम महिला प्रस्ताव व सहमति के जरिये समझौता करते हैं तथा दूल्हे ने दुल्हन को मेहर का भुगतान किया है, तो इसे वैध विवाह माना जाता है. मध्य प्रदेश के ग्वालियर में जीवाजी विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ लॉ के मोहम्मद परवेज अपने रिसर्च पेपर में लिखते हैं कि सहिह निकाह में पति-पत्नी कानूनी तौर पर विवाहित हो जाते हैं. वैध विवाह में दोनों पक्षों को विरासत में मिलने वाली संपत्तियों पर उत्तराधिकार हासिल हो जाता है. हालांकि, मुस्लिम कानून तलाक होने पर पत्नी को गुजारा भत्ता देने की अनुमति नहीं देता है. ऐसा माना जाता है कि शादी के समय दिया जाने वाला मेहर उसके लिए पर्याप्त है. फिर भी, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि तलाक होने पर पत्नी को अपने और बच्चों की गुजर-बसर के लिए गुजारा भत्ता पाने का पूरा अधिकार है.

इस्लाम में विवाह को सामाजिक अनुबंध माना जाता है.
सहिह निकाह के बाद के क्या हैं नियम?
– पति-पत्नी को एक-दूसरे के प्रति वफादार रहना होगा. हालांकि, मुस्लिम पुरुष को बहुविवाह की अनुमति है. इसलिए ये नियम पत्नी पर ही लागू होता है.
– अगर पत्नी बात ना माने या बेवफा है तो कुरान किसी पुरुष को उचित तरीकों से अपनी पत्नी को डांटने या दंडित करने की अनुमति देता है.
– सहिह निकाह से हुए बच्चे जायज बच्चे माने जाते हैं.
– पत्नी के विधवा होने या तलाक देने पर वह मुस्लिम कानून के तहत इद्दत की रस्म निभाने के लिए बाध्य है. इसके तहत पत्नी मृत्यु की तारीख से 90 दिन से पहले किसी दूसरे व्यक्ति से दोबारा शादी नहीं कर सकती है.
इस्लाम में क्या होता है बातिल निकाह?
भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 के मुताबिक, जिस समझौते को कानूनी तौर पर लागू नहीं किया जा सकता है, उसे शून्य समझौता माना जाता है. इसी तरह से होने वाली दुल्हन और दूल्हे के बीच ऐसा समझौता, जो मुस्लिम विवाह की सभी शर्तों को पूरा नहीं करता है, शून्य समझौता है. कोई भी विवाह जो शून्य समझौते को आगे बढ़ाने के लिए होता है, उसे शून्य विवाह या बातिल निकाह कहा जाता है. मुंशी बनाम आलम बीबी केस में अदालत ने कहा था कि जब किसी शर्त का पालन न करने के कारण विवाह पर स्थायी प्रतिबंध लगाया जाता है, तो उसे शून्य विवाह माना जाता है. जब वैध विवाह के लिए जरूरी शर्तों को निकाह से पहले पति-पत्नी पूरा नहीं करते हैं तो विवाह शून्य और गैर-बाध्यकारी हो जाता है.
किन हालात में मुस्लिम विवाह शून्य है?
जब निकाह बिल्कुल अयोग्य जोड़े के बीच होता है, तो उसे गैर-बाध्यकारी या शून्य विवाह माना जाता है. जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति की वैध शादी वाली पत्नी से विवाह करता है, तो इसे भी बातिल निकाह माना जाता है. अगर कोई मुस्लिम पुरुष चार से ज्यादा शादियां करता है, तो बाकी सभी विवाह बातिल निकाह माने जाते हैं. गैर-मुस्लिम पुरुष या महिला से की गई शादी को इस्लाम में जायज निकाह नहीं माना जाता है. तंजेला बीबी बनाम बजरुल शेख में अदालत ने कहा था कि पहले से गर्भवती महिला के साथ विवाह शून्य माना जाता है. बातिल निकाह से पैदा हुए बच्चे नाजायज माने जाते हैं. उन्हें किसी तरह का उत्तराधिकार नहीं मिलता है. बातिल निकाह में बिना किसी कानूनी औपचारिकता के दोनों आसानी से अलग हो सकते हैं.

गैर-मुस्लिम पुरुष या महिला से की गई शादी को इस्लाम में जायज निकाह नहीं माना जाता है.
कब विवाह को माना जाता है फासिद निकाह
अता मोहम्मद बनाम सैकुल बीबी मामले में देखा गया कि जब कोई विवाह अस्थायी रूप से प्रतिबंधित होता है और निश्चित तौर पर प्रतिबंधित नहीं होता है तो यह केवल अनियमित या फासिद होता है. ये शून्य विवाह नहीं होता है. फासिद निकाह को अनियमित विवाह भी कहा जाता है, जिसमें कई पहलू शामिल होते हैं. अनियमित विवाह केवल सुन्नी मुसलमानों के मामले में होते हैं, जबकि शिया कानून के तहत फासिद निकाह शून्य विवाह है. जब कोई निकाह वैध विवाह की कुछ या आंशिक शर्तों का उल्लंघन करके किया जाता है, तो उसे अनियमित विवाह माना जाता है. अनियमित विवाह का उदाहरण एक मुस्लिम और एक हिंदू, ईसाई या यहूदी के बीच विवाह है. फासिद निकाह से अनियमितता दूर होते ही विवाह वैध हो जाता है. इसलिए, सुन्नी मुस्लिमों में दूसरे पक्ष के इस्लाम को अपनाते ही शादी वैध हो जाती है.
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मुताह निकाह की क्यों पड़ी जरूरत?
इस्लाम में मुताह विवाह केवल शिया मुसलमानों में होता है. अबू धाबी, दुबई जैसे ज्यादातर अरब देशों में मुसलमानों का शिया संप्रदाय है. आमतौर पर शेख कहे जाने वाले लोग तेल उत्पादन, शोधन और निर्यात का कारोबार करते थे. व्यावसायिक समझौतों के कारण उन्हें दूर-दराज की यात्राएं करनी पड़ती थीं. इस दौरान वे कई दिनों या महीनों तक किसी एक ही शहर में रहते थे. इस दौरान शेख अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए अस्थायी निकाह कर लेते थे. बाद में शहर छोड़ने के समय उनका तलाक हो जाता था और शादी के बदले में मेहर का भुगतान किया जाता था. इस विवाह को शिया संप्रदाय ने मुस्लिम पर्सनल लॉ में मान्यता दी. ईरान में इसे सिगेह या सिघेह निकाह भी कहा जाता है. इसमें शिया पुरुष किसी भी धर्म की महिला से निकाह कर सकता है.
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Tags: Illegal Marriage, Islam tradition, Islamic Law, Marriage Law, Muslim Marriage
FIRST PUBLISHED : December 26, 2023, 16:19 IST
